"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


13 November 2010

Those looted temples - वे लुटे हुए मंदिर

मैंने श्री पा.ना. सुब्रमणियन को मेघनेट पर बहुत सकारात्मक टिप्पणीकार के रूप में देखा है. उनका लिखा आलेख मेरे लिए कुछ नई सूचनाएँ दे गया है. पाली (छत्तीसगढ़) का शिव मंदिरनामक आलेख में वे लिखते हैं:-

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मंदिर के अन्दर श्रीमद जाजल्लादेवस्य कीर्ति रिषम3 जगह खुदा हुआ है. इसके आधार पर यह माना जाता रहा कि मंदिर का निर्माण कलचुरी वंशीय यशस्वी राजा जाजल्लदेव प्रथम के समय 11 वीं सदी के अंत में हुआ होगा.  19 वीं सदी में भारत के प्रथम पुरातात्विक सर्वेक्षक श्री कन्निंघम की भी यही धारणा रही.  परन्तु 20 वीं सदी के  उत्तरार्ध में डा. देवदत्त भंडारकर जी ने मंदिर के गर्भ गृह के द्वार की गणेश पट्टी पर बहुत बारीक अक्षरों में लिखे एक लेख को पढने में सफलता पायी. इस लेख का आशय यह है कि महामंडलेश्वर मल्लदेव के पुत्र विक्रमादित्य ने  यह देवालय निर्माण कर कीर्तिदायक काम कियाभंडारकर जी को अपने शोध/अध्ययन के आधार पर मालूम था कि बाणवंश में विक्रमादित्य उपाधि धारी 3 राजा हुए हैं.  पाली में उल्लिखित विक्रमादित्य, महामंडलेश्वर मल्लदेव का पुत्र था अतः जयमेरूके रूप में उसकी पहचान बाणवंश के ही दूरे शिलालेखों के आधार पर कर ली गयी. जयमेरू का शासन  895 ईसवी तक रहा. अतः पाली के मंदिर का निर्माण 9 वीं सदी का है. परन्तु कलचुरी शासक जाजल्लदेव (प्रथम) नें 11 वीं सदी में पाली के मंदिर का जीर्णोद्धार  ही करवाया था न कि निर्माण.

शिल्पों की विलक्षण लावण्यता के दृष्टिकोण से यह मंदिर भुबनेश्वर के मुक्तेश्वर मंदिर (10 वीं सदी) से टक्कर लेने की क्षमता रखता है. वैसे बस्तर (छत्तीसगढ़) के नारायणपाल के मंदिर से भी इसकी तुलना की जा सकती है. यह मंदिर भी शिल्पों से भरा पूरा रहा होगा पर अब लुटा हुआ दीखता है.

वहां भी मंडप गुम्बदनुमा  ही रहा जो क्षतिग्रस्त हो गया. परन्तु इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजाओं के द्वारा 12 वीं सदी में किया गया था.

मुझे जो महत्व का लगा उसे मैंने मोटे अक्षरों में कर दिया है.

पूरा आलेख आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-- पाली छत्तीसगढ़ का शिव मंदिर

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7 comments:

  1. Wonderful.. Impressive.. The remains of this Shiv Mandir leave the impression on the mind that the past artisanship produced the precious pieces of art to preserve them.

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  2. @ भूषण जी..
    आपके ब्लॉग से ही अच्छी जान कारी मिलती है

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  3. मैने देखा थी उनकी पोस्ट। आपने भी अच्छी जानकारी दी है। धन्यवाद।

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  4. @निर्मला जी, आपकी टिप्पणी मैंने वहाँ भी देखी है. आपके भीतर के पाठक का मैं हृदय से सम्मान करता हूँ.
    @संजय जी आपका आभार.
    @Mohan Devraj Ji, I am in receipt of your detailed comments. Thanks so much.

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  5. Thanks for this informative post.

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  6. Very good post, Thanks,

    form Dr Nitin, Jamnagar,Gujarat,

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