"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


13 January 2011

Kabir is deep rooted - मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे....मैं तो हूँ विश्वास में

कबीर जुलाहा परिवार से थे. ऐसा उनकी वाणी में आता है-  ‘कहत कबीर कोरी. कोली-कोरी समाज कपड़ा बनाने का कार्य करता है. संभवतः वे कोरी परिवार में जन्मे थे जिसने इस्लाम अपनाया था. कुछ मेघवंशी स्वयं को कबीर के साथ जोड़ कर देखते हैं और कई कबीरपंथी कहलाना पसंद करते हैं.

ख़ैर. यह श्रद्धा और विश्वास का मामला है. लेकिन अकसर देखा है कि कबीर के जीवन और उससे जुड़े रहस्यों और चमत्कार की कहानियों को इतना महत्व दे दिया जाता है कि कबीर का वास्तविक कार्य पृष्ठभूमि में चला जाता है.

वे लहरतारा तालाब के किनारे मिले या गंगा के तट पर इस पर बहस होती है. उनके जन्मतिथि के निर्धारण पर चर्चा होती है. उनके गुरु कौन थे इस पर विवाद है. वे किसी विधवा ब्राह्मणी की संतान थे या नीरू के ही घर पैदा हुए इस पर दंगल हो सकता है. वे सीधे प्रकाश से उत्पन्न हुए और कमल के फूल पर अवतरित हुए ऐसा चित्रित किया जाता है. यह पूरा का पूरा कबीरपुराण बन जाता है जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं.

कबीर को यदि सम्मान देना हो तो उनके दिए ज्ञान पर ध्यान रखना चाहिए. यह देखना चाहिए कि उनका जीवन संघर्ष क्या था. उन्होंने कैसे विचारों को ग्रहण किया जिनके ज़रिए उन्होंने मानसिक ग़ुलामी पर जीत पाई और अपनी स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया. सामाजिक कुरीतियों कैसे प्रहार किया. कबीर की वाणी में ऐसी रचनाएँ बड़ी संख्या में जोड़ दी गई हैं जो कबीर के व्यक्तित्व से मेल नहीं खातीं. पुराने इतिहास और साहित्य में ऐसी गड़बड़ी बड़े स्तर पर की गई है. मंशा शायद कबीर को पौराणिक पात्र बना डालने की रही होगी. पुराणों की कथाएँ और परंपरागत धार्मिक प्रबंधन मानसिक ग़ुलामी को दृढ़ रखने के लिए है. इस बात को कबीर ने भली-भाँति समझा था.

कबीर को सामान्य मानव की भाँति देखा जाए तो वे होशियार ज्ञानी थे. वे अवतारवाद के खिलाफ काफी कुछ कह गए हैं. 



5 comments:

  1. Kabir was surely son of Mohd.Noor Ali @ Neeru (Father) & Neema (Mother). His fore-fathers were Hindus, who had converted to Islam, because of the Brahminical atrocities. Right from his chidhood, he used to roam about in the company of religious saints, from most of whom he learnt secular ideas. As he was opposed to ancient Brahminism, he uttered the warlike words, "Panditwad Vedant Jhootha, Pande Kaun Kumati Tohi Laagi". In his further attack, he said, "Dash Avtar Niranjan Kahiye, So Apna Na Koye". Thus feeling alarmed, the Hindu priests who in those days held the monopoly over reading and writing, assigned to him the mysterious stories regarding his birth, just to pull-down his personality and make him unpopular. They also interpolated, added or deleted many of his verses in such a manner, so as to defame him and reduce his following. He was a man of free spirit & like Buddha, he believed that an individual, by using his own mind should attempt to be his own light, instead of blindly following any mythical religious concepts particularly relating to both Hinduism & Islam. The essence of his struggle was to prepare the people for communal harmony with all respect, dignity & love for each other. ..............RATTAN

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  2. Thanks Gottra Ji for your very informative and confirming comment. This was possible only from your pen.

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  3. कबीर पर एक सुंदर पोस्ट ...अंधविश्वास से अधिक है स्वानुभव से जीना..स्वाभिमान से जीना !

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  4. कबीर जैसे महापुरुषों को यदि सम्मान देना हो तो उनके दिए ज्ञान पर ध्यान रखना चाहिए.
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    बहुत सही बात बताई है...यह ग़लती हम हमेशा ही करते हैं

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  5. Thank you all of you dear.

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