कई
जानकारियाँ फेसबुक के माध्यम
से बहुत जल्दी मिलती हैं.
इसी
सिलसिले में महिषासुर,
जिसे
हमारे देश के कई यादव और असुर
जनजाति के लोग अपना पूज्य और
आराध्य पूर्वज मानते हैं,
के
बारे में इन नवरात्रों के
दौरान काफी जानकारी मिली.
कहीं
उसका शहादत दिवस मनाया गया
और कहीं उसके बारे में छापने
वाली पत्रिका फारवर्ड प्रेस (Forward Press)
के कार्यालय
से उसकी प्रतियाँ जब्त कर ली
गईं.
ख़ैर,
फेसबुक
के ज़रिए Piyush
Babele से
यह जानकारी मिली :-
''भैंसासुर
का स्मारक और हिंदुत्व की
दुहाई
ये
तस्वीर है भैंसासुर यानी
महिषासुर के स्मारक की.
मऊरानीपुर
से हरपालपुर के रास्ते पर धसान
नदी को पार करके कुछ ही दूर
बाद बाएं हाथ पर एक सडक़ मुड़कर
यहां तक पहुंचती है.
पुरातत्व
विभाग ने इसे संरक्षित घोषित
किया है लेकिन ऐसा कोई बोर्ड
नहीं लगा है जिस पर इसका निर्माण
काल लिखा हो.
लिखापड़ी
के इस अभाव में भी इतना तो कहा
ही जा सकता है कि हमारी कथित
हिंदू संस्कृति किसी न किसी
रूप में महिषासुर को स्वीकार
करती थी.
अब
जब नई सरकार ने महिषासुर को
नायक मानने पर पत्रिका फारवर्ड
प्रेस पर डंडा चलाया है,
तो
सोचना पड़ेगा कि सरकार संस्कृति
की रक्षा कर रही है या उसका
नाश कर रही है.
ये
हरकतें देखकर मेरा विश्वास
फिर दृढ़ होता है कि हिंदू
धर्म को खतरा सिर्फ हिंदुत्व
से है और किसी से नहीं.''
बहरहाल
चित्र से मालूम पड़ता है कि
इस स्मारक के रखरखाव का काम
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास है.
लेकिन
चित्र पूछ रहा है कि यह विभाग
कार्य कर रहा है क्या?
एक
अन्य लिंक-
महिषासुर
का स्मारक
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